बंटती रेवड़ियों, बजट के असंतुलित बंटवारे ने भी किया बंटाधार, हिमाचल की खराब अर्थव्यवस्था बनी मुद्दा

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सत्ता पक्ष अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वित्तीय अनुशासन के कड़े फैसले लेने की बात कर रहा है तो विपक्ष राज्य सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन के आरोप लगा रहा है।

Analysis: Distribution of freebies, unbalanced distribution of budget also ruined the situation, Himachal's po

हिमाचल प्रदेश की खराब अर्थव्यवस्था इन दिनों फिर बड़ा मुद्दा बन गई है। सत्ता पक्ष अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वित्तीय अनुशासन के कड़े फैसले लेने की बात कर रहा है तो विपक्ष राज्य सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन के आरोप लगा रहा है। ऐसा हिमाचल के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि वेतन पांच तारीख और पेंशन 10 तारीख को देने की स्थिति पैदा हुई है। खुद मुख्यमंत्री ने कहा है कि बाजार से कर्ज उठाने की सीमा 2,317 करोड़ रुपये ही रह गई है। कर्ज के अनावश्यक ब्याज से बचने के लिए वेतन और पेंशन को थोड़े समय तक रोकना पड़ा है। पिछली देनदारियों को निपटाने के लिए कर्ज पर कर्ज लेना सरकार की परंपरागत मजबूरी बन गया है।

दशकों से राज्य में आमदनी के स्थायी स्रोत नहीं बन पाए। इसके लिए पिछली तमाम सरकारों की कोशिशें नाकाम ही साबित हुईं।  सुक्खू सरकार को सत्ता में आए हुए अभी बीस महीने हुए हैं, पर इसे बड़ी आर्थिक तंगहाली से जूझना पड़ रहा है। हिमाचल के बनने के बाद बिजली परियोजनाएं स्थापित करने और उद्योगाें को लगाने के प्रयास हुए। पर्यटन और बागवानी के क्षेत्र से भी उम्मीद की गई, मगर राज्य देनदारियों के बोझ तले ही दबता रहा। यहां शुरू से ही आमदनी अठन्नी भी नहीं और खर्च रुपया की स्थिति बनी हुई है। मुफ्त की रेवड़ियां बांटना भी एक वजह है, मगर उससे भी ज्यादा बड़ा कारण आय के नाममात्र के स्रोतों का होना और उपलब्ध बजट का असंतुलित बंटवारा है।

राज्य के कुल बजट का करीब 60 फीसदी हिस्सा कर्मचारियों और पेंशनरों के वेतन-पेंशन व ऋण को चुकता करने में ही खर्च हो रहा है। कर्मचारियों और पेंशनरों की संख्या करीब चार लाख है और आबादी करीब 70 लाख है। ऐसे में एक बहुत बड़ी जनसंख्या को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रदेश सरकारें संतुलित आर्थिक आवंटन नहीं कर पाईं और विकास के लिए 40 फीसदी से भी कम बजट बच पा रहा है। 1992 से पहले हिमाचल पर ज्यादा ऋण नहीं था। इसके बाद कर्ज लेने की दर ने रफ्तार पकड़ी।
यह सिलसिला कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों में गति पकड़े रहा। वर्ष 2011-12 में भाजपा की धूमल सरकार का कार्यकाल खत्म होने तक हिमाचल प्रदेश पर 26,684 करोड़ रुपये का ऋण था। फिर कांग्रेस की वीरभद्र सरकार के कार्यकाल में ऋण 2016-17 तक 44,422 करोड़ रुपये हो गया। यह भाजपा की जयराम सरकार के समय तक करीब 75 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया और कुल देनदारियां करीब 80 हजार करोड़ के पार हो गईं। वर्तमान सरकार में यह ऋण 90 हजार करोड़ पहुंच रहा है। आगे कुल देनदारियां एक लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा छू सकती हैं।

40 साल से जो व्यवस्था चल रही है, उसमें सुधार करने की जरूरत है। कड़े फैसले लेकर सुधार कर रहे हैं। 20 फीसदी अर्थव्यवस्था पटरी पर लाई जा चुकी है। हिमाचल प्रदेश पर हजारों करोड़ की देनदारियां चुनाव से पहले भाजपा ने छोड़ी हैं।– सुखविंद्र सिंह सुक्खू, मुख्यमंत्री
हिमाचल प्रदेश तीव्रता से आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है। इसका कारण कांग्रेस की गलत नीतियां हैं। पहली बार ऐसे हालात उपजे हैं कि कर्मचारियों को चार तारीख को भी वेतन और पेंशन नहीं दिए गए। वित्तीय कुप्रबंधन साफ दिख रहा है। – जयराम ठाकुर, नेता प्रतिपक्ष


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