कारगिल युद्ध के वीर सपूतों की शौर्य गाथाएं आज भी हर जुबान पर है और हम सब में देश भक्ति की भावना को और मजबूत करती है।

कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर भारतीय सशस्त्र बलों की जीत के उपलक्ष्य में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। कारगिल युद्ध में हिमाचल प्रदेश के वीर जवानों ने भी सरहद की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया था। इन वीर सपूतों की शौर्य गाथाएं आज भी हर जुबान पर है और हम सब में देश भक्ति की भावना को और मजबूत करती है। हिमाचल प्रदेश का ऐसा ही एक बहादुर अफसर कारगिल युद्ध में देश पर बलिदान हो गया था। दुश्मन भी इनके नाम से थर-थर कांपते थे। 9 सितंबर 1974 को कांगड़ा जिले के पालमपुर में घुग्गर गांव में जन्मे शहीद विक्रम बत्रा को उनकी बहादुरी के कारण दुश्मन भी उन्हें शेरशाह के नाम से जानते थे।
परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में देश के लिए शहीद हो गए थे। विक्रम बत्रा की शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप का नाम दिया गया है। हालांकि, कारगिल युद्ध के 22 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इस युद्ध के हीरो के अदम्य साहस और वीरता की कहानियां आज भी हमारी रगों में जोश भर देती हैं। शहीद विक्रम बत्रा ने 1996 में इंडियन मिलिटरी अकादमी में दाखिला लिया था। 6 दिसंबर 1997 को कैप्टन बत्रा जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट शामिल हुए। कारगिल युद्ध में उन्होंने जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन का नेतृत्व किया।